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      प्रायश्चित

      प्रायश्चित

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      4. प्रायश्चित

      प्रायश्चित

      प्रभो मैं अमित दोषों से भरा हूँ ।

      नजर नीचे कर, तेरे आगे खड़ा हूँ

      जो पूंजी थी संचित, वो आया लुटाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ॥ १ ॥

      सदा क्रूर कर्म ही, करता मैं आया ।

      कटुक वाणी से सबका, दिल ही दुखाया ।।

      विकारों की थाती, मैं लाया कमाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ॥२॥

      सदा लालसा मान की, है सताती ।

      किसी की भली बात, मन को न भाती ॥

      लता मैं कुकर्मों की आया बढ़ाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर || ३ |

       क्रोधी मैं ऐसा, सदा तम-तमाऊँ ।

      स्वारथ के वश ही हो, धर्म निभाऊँ ॥

      निंदक कुटिल खुद को, लाया बनाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ||४||

      सदा क्षोभ संतों का, अर्जित किया है।

      इसी वास्ते रोष, तेरा लिया है।

      गिनती नहीं पाप, इतने बदन पर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ॥५॥

      छुड़ाऐ न छूटे, जगत मोह ऐसा ।

      सदा छिद्र दिखें, मैं निंदक हूँ ऐसा ॥

      अंतस् का धीरज, मैं आया गंवाकर ।

      क्षमाकर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर || ६ ||

      तेरे आगे ये मस्तक, मैं कैसे उठाऊँ ।

      नजर ऊंची कर कैसे, मैं दृष्टि मिलाऊँ ॥

      उदार है तूं, दोष मेरे भुलाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ॥७॥

      दण्डित करो या, चरणों से लगाओ ।

      अपराध मेरे प्रभो, भूल जाओ ॥

      अरजी यही दर पे तेरे, दयाकर ।

      क्षमाकर प्रभो मेरे, मुझको क्षमाकर ||८|| \

      है ये झुका मस्तक, झुका ही रहेगा ।

      करोगे क्षमा जब, तभी ये उठेगा ||

      कभी हम गरीबों की, भी सुनाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ||९||

      सत् पथ पे मुझको है, तुमने चलाना ।

      पतित है जो जीवन, तुम्हीं ने उठाना ॥

      धड़कन में सांसों में, तूं ही रमाकर ।

      क्षमा कर प्रभो मेरे, मुझको क्षमा कर ॥ १० ॥

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