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      श्री चक्रधर चालीसा

      श्री चक्रधर चालीसा

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      श्री चक्रधर चालीसा

      परम प्रभु श्रीचक्रधर, चिदानंद साकार ।

      पीतवर्ण शोभित तनु, पूर्ण जगदाधार ॥

      विशाल देव के सुत प्रभु, सदा हरें त्रयताप ।

      केवल जिनके सिमरण से, भस्म होत सब पाप ॥

      नाम चक्रधर श्री भगवन्ता ।

      अखिल भुवन पति अमर अनंता ।।

      सर्वकामनाओं के दाता ।

      स्थावर जंगम के पितु-माता ॥

      सकल जगत प्रभु रखवारे ।

      चार पदार्थ देवन हारे ।

      भक्तजनों के रक्षक स्वामी ।

      सकल चराचर के प्रभु स्वामी

      भक्तजनों की सुनें पुकार ।

      जो सुने सदा सुक्ष्म झनकार ॥

       कष्ट भक्त के क्षण में हरें ।

      मम कानों की रक्षा करें ॥

      वागेश्वरी सिद्धि के दाता ।

      मूक कृपा से गीत सुनाता ॥

      वाणी शुद्ध करो प्रभु मेरी ।

      तव गुण गान में हो नहीं देरी ॥

      सत्य व मीठी हो हितकारी ।

      हो रसना में कृपा तिहारी ॥

      दास जनों के रक्षक स्वामी ।

      दीन की रक्षा करो स्वामी ॥

      कृपा निधान सकल उरबासी ।

      घट-घट में तब ज्योति प्रकाशी ॥

      शुद्ध करो प्रभु मन चित मेरा ।

      चाहिए एक अनुग्रह तेरा ॥

      शुद्ध बुद्धि प्रभु मेरी होवे ।

      कृपा आपकी कलिमल धोवे ॥

      मन प्रसाद आपका पावे ।

      भाव शुद्ध मेरा हो जावे ॥

      विद्या लाये कांती कार ।

      कीनी आपने वह स्वीकार ॥

      आयु स्थंभनी विद्या आई ।

      कृपा कीनी निज हृदय बैठाई ॥

      राखो शस्त्राघात से, जान अपनो दास ।

      गुण गावे प्रभु आपके मेरा इक इक स्वास

      ब्रह्मसान का विष प्रभु, कर लीनो स्वीकार ।

      सब जहरों से कीजिए, रक्षा हे करतार ॥

      परावर उभय शक्ति के मालिक ।

      हमें बाहुबल दो प्रतिपालक ॥

      हे अजान बाहु भय त्राता ।

      नमस्कार नाथन के नाथ ॥

      भक्तजनों के प्रभु कैवारी ।

      प्रभु जी रक्षा करो हमारी ॥

      हे अमेध सुख देने वाले ।

      मम तन के प्रभु तुम रखवाले ॥

      हो निर्मल मन मेरा स्वामी ।

      करो कृपा प्रभु अन्तर्यामी महदाश्रम कार्यविध्वंसक ।

      संत जनो से नाथ प्रशंसक ॥

      यन्त्र - मन्त्र से मुझे बचाना।

      मारणोच्चाटन दूर भगाना ॥

      कुटिल शत्रु गण मेरे स्वामी ।

      दूर करो हे अन्तर्यामी ॥

       दायंबा के विघ्न विनाशन ।

      ध्यावे आपको यह मेरा मन ॥

      प्रेत-पिशाच से मुझे बचाओ ।

      भूचर खेचर दूर भगाओ ||

      नवग्रह पीड़ा नहीं सतावे ।

      कृपा आपकी यदि हो जावे ॥

      रक्षा करो श्रीचक्रधर मेरी ।

      चाहूँ कृपा प्रभु मय तेरी पंचकुला ग्रह हरने हारे ।

      दूर ग्रहों को हरने हारे ।।

      देवताओं के कोप से स्वामी ।

      करो रक्षा हे अन्तर्यामी ॥

      दोहा

      काल स्फोट महा भयकारी ।

      आपकी दया विनाशनहारी ॥

      सकल रोग से मोहे बचाना।

      अपने चरणों बीच लगाना ||

      त्राहि-त्राहि त्रिभुवन पति, श्रीचक्रेश्वर भगवान् ।

      संकट काटो दास के, हरो सकल अज्ञान गोवारी रेनायक ज्वर से अति दुःख पायें तव चरणों में आनकर, रोग मुक्त हो जाये। सर्पद्वय पतना हे रक्षक । ताप विनाशन हे भय भक्षक सर्पादिक से रक्षा करनी । संहारक विष-क्षण में हरनी

      माली सर्प विष हरने वाले । कार्य उसका करने वाले विंगली बिच्छु दुखदायक । कृपा आपकी हुई सहायक नील भट्ट की रक्षा कीनी । क्षण में ताकि मृत्यु हर लीनी ॥ बिच्छु आदि से मुझे बचाना। सबसे रक्षा कर दिखलाना ।।

      व्याघ्र रोष को हरने हारे ।

      कारज भक्त के करने हारे ॥

      सिंहादिक से रक्षा करो ।

      हे प्रभु सब मेरे भय हरो ॥

      नीच हेमाडपंत था भारी ।

      सेना सकल उसकी संहारी ॥

      मम शत्रु भय दूर भगाओ ।

      झगड़ों से हे नाथ बचाओ

      कान्हर देव शरण में आया ।

      महादेव ने तब गुण गाया ।

      यादव राजा दोऊ अपनाए।

      उनके सारे खौफ मिटाए

      उनके सद्वश दास कहाऊं ।

      गुणगान तुमरे प्रभु गाऊं ॥

      स्त्री जल से तारन हारे ।

      नाथोबा को उबारन हारे ।

      मुझे जलादि से बचाना।

      हाथ पकड़कर पार लगाना ॥

      शीतल रूप हैं आपका स्वामी ।

      हरो अग्निभय से हे अन्तर्यामी ॥

      दोहा

      तैल्यकार की मन्दमति, हरि आपने नाथ ।

      मन्दमति मेरी हरो, कर दो नाथ सनाथ ॥

      अभय दान देना मुझे, दानी प्रभु महान ।

      विद्या दो अपरापरा, यह मांगू मैं दान ॥

      चौपाई

      हे प्रभु आप ने यह फरमाया ।

      जो नर मेरी शरण में आया ॥

      वह नहीं डरे नाहीं घबराये ।

      भय नहीं उसको कभी डरावे ॥

      राज भय नहीं उसे डराता ।

      चोर भय नहीं उसे सताता ॥

      शत्रु भय से वह बच जावे ।

      नभ की बिजली निकट न आवे

      डूबत साधा शरण में आई।

      आपने निर्भय कर दिखलाई ॥

      पांच तत्व नहीं मोहे डरावें ।

      नर तव भगत अभय हो जावें ॥

      सर्व धर्म का त्याग मैं कीना ।

      आसरा केवल आपका लीना ॥

      अब मोहे मुक्त करो प्रभु मेरे पड़ा नाथ हूँ द्वारे तेरे ॥

      नागार्जुन को प्रभु वर दीना ।

      आपने उसको अपना कीना ॥

      ज्ञान प्रेम प्रभु मुझको देना ।

      मोह अज्ञान सकल हर लेना ॥

      सकल सिद्धि प्रभु मोहे देवो ।

      संकट सकल आप हर लेवो ॥

      मैं चाहूँ कैवल्य को स्वामी ।

      तर जाऊं हे अन्तर्यामी ।

      मुझ अपवित्र को पावन करना ।

      अपवित्रापन प्रभु मेरी हरना

      आप हो मंगलों के प्रभु मंगल ।

      काटो आवागमन के संगल ॥

      करो नाथ मन मेरा निर्मल ।

      भक्ति करूं आपकी निश्चल ।

      दास है बेजर आपका स्वामी ।

      नमस्कार तोहे अन्तर्यामी ।

      मैं अभिमानी पातकी ।

      कुटिल महा चण्डाल ।

      कोधी हिंसक घातकी ।

      तामस मेरी चाल ॥

      अपयश दोषी लालची ।

      नीचों का मैं नीच ।

      उर्मी मत्सर क्रूर हूँ।

      काम क्रोध के बीच ॥

      मैं लोभी स्वार्थी हूँ स्वामी ।

      महामन्द बुद्धि अति कामी

      मैं निंदक पापी हूँ भारी ।

      नास्तिकपन मेरी मति मारी ॥

      गुरु द्रोही गुरुमार्ग द्रोही ।

      कलिमल है मतिमेरी मोही

      मैं परिवार का घातक पूरा ।

      अभिमानी हूँ ज्ञान अधूरा

      मैं विश्वास घातकी नर हूँ ।

      महामंद गति नरतन खर हूँ ॥

      योग भ्रष्ट संतों का वैरी ।

      धन हरने में आंख है कैरि ॥

      वर्म स्पर्श में बड़ा चातूर ।

      मूढ कुयोगी पापों का घर ॥

      गुण नहीं कोई अवगुण सारे ।

      अवगुण मुझसे करो किनारे ॥

      मैं नीच का हूँ महाराजा ।

      दुष्टभाव का बाजे बाजा ||

      विद्या हीन महा अज्ञानी ।

      पर दूषक पापी अघ खानी ॥

      भ्रष्टाचार सदा अपनाऊँ ।

      भ्रमर तुल्य मन सदा भरमाऊँ ॥

      रागद्वेष हैं बंधु मेरे ।

      दुष्टता करता सांझ सवेरे ॥

      सत्य चरण नहीं पूज दिखाये ।

      मन्दिर मन मेरे नहीं भाये ॥

      पाँच विषय मेरे मन भावें ।

      नरकों की मोहे राह दिखावें ॥

      नरकों का मैं हूं अधिकारी ।

      नहीं पापी कोई मुझ सा भारी ।

      दोहा

      वे नर तारे आपने, हुआ जिन्हें था ज्ञान ।

      नहीं बड़ाई आपकी, हे मेरे भगवान् ॥

      चौपाई

      मुझ सा पापी तारना, तब जानू बड़ बात ।

      हे प्रभु अपने ज्ञान से ज्ञानी नर तर जात ॥

      कृपा आपकी मुझ पर होवे ।

      दास आपका फिर नहीं रोवे ॥

      पश्चाताप मैं करूं हे भगवन् ।

      निर्मल करदो प्रभु मेरा ये मन ।।

      शरण आपकी मैं चल आया ।

      निर्मल कर दो मेरी काया ॥

      दासन दास हूँ आपका स्वामी ।

      पार लगाओ अन्तर्यामी ॥

      अपनी दया का परिचय देना ।

      मेरा दुष्ट भाव हर लेना ॥

      चरणों में मैं प्रभु शीश झुकाऊँ ।

      सदा आपके गुणगान मैं गाऊं ॥

      रोता हूँ कोई पेश न जावे ।

      गया वक्त फिर हाथ न आवे ।।

      कृपा सिन्धु अब मोहे बचाना।

      भव सागर से पार लगाना ।।

      टूटी नैया रैन अंधेरी मारी गई प्रभु बुद्धि मेरी

      आसरा नहीं बिन आपके स्वामी ।

      आप हो रक्षक अन्तर्यामी ॥

      दोहा

      पतित उधारन नाम तिहारा ।

      तेरा है प्रभु एक सहारा ॥

      श्रीचक्रधर सृष्टी के कर्त्ता ।

      पालक पोषक हैं संहरता ॥

      मोहे अपना जानकर, देना पार उतार

      । नैया मेरी डोलती, बनना खेवन हार ॥

      चौपाई

      सबकी आशा छोड़कर, आया तेरे पास

      यह निश्चय मन मेरे । मेरी होगी दूर प्यास ।

      सूर्य चन्द्र में चमक तिहारी है विद्युत में दमक तिहारी ॥

      वेग पवन में आपका स्वामी

      । सब उर बस रहे ये अन्तर्यामी ॥

      पुष्पों में सुंदर तव वास ।

      जल में शीत तुम्हारी खास ॥

      एक अंश में जगत है सारा ।

      विराट रूप प्रभु आपने धारा ॥

      नाम श्रीचक्रधर परम मनोहर ।

      पीत वर्ण मन भाव सुंदर ।

      सुंदरता है काम मद हरनी ।

      सकल विश्व आपने वश करनी ॥

      सकल चराचर सेवक तेरे ।

      सकल देवता तेरे चेरे ॥

      देवताओं ने शक्ति पाई ।

      तेरी महिमा जिस दम गाई ॥

      ब्रह्मा, विष्णु, महेश ध्यावें ।

      आपके चरणी शीश झुकावे ॥

      कृष्ण रूप द्वापर में धारा ।

      पावन गीता गीत उचारा

      कलयुग में श्रीचक्रधर स्वामी ।

      संकट हारे अन्तर्यामी ॥

      कौतुक आप अनेकों कीने।

      सब भक्तों के भय हर लीने ॥

      आपकी महिमा अमित अपार ।

      भक्त जनों के सिरजनहार ॥

      जब भक्तों पर भीड़ है बनती।

      दुष्ट जनों की गाढ़ी छनती ॥

      दोहा

      तब देते प्रभु आप सहारा ।

      निश्चय है प्रभु यही हमारा

      अब बेजर की भी सुध लीजो।

      पूर्ण नाथ मनोरथ कीजो

      त्रिगुणातमक माया सदा रही मुझे भरमाय ।

      चरणों में प्रभु आपके चाहूँ मन ये लग जाये ।।

      दया आपकी होय यदि, हो जाएं दुःख दूर ।

      इस बेजर निजदास पर, करनी कृपा जरूर ॥

      चौपाई

      जो नरनित चालीसा गावे ।

      कष्ट ओसदे निकट न आवे ||

      सुख शान्ति और देवो ज्ञान ।

      नहीं कोई दाता ताहि समान ॥

      श्रीचक्रधर है नाम प्यारा ।

      नित्य मुक्ती को देवन हारा ॥

      आर्त होय जो आये द्वारे |

      उसके स्वामी काज संवारे

      श्रीचक्रधर चालीसा जो पढ़े।

      नासें उसके पाप ॥

      श्रीचक्रपाणि प्रभु स्मरण से ।

      मिटे सकल संताप ॥

      चौपाई

      प्रेम दान अरू मुक्ती को ।

      मांगत हैं गोपाल ।

      बार-बार करूं बेनती ।

      सुनिये माल्हनी लाल

      जय श्रीचक्रधर हे भगवान् ।

      रक्षा कीजो कृपा निधानः ॥

      काटो संकट सब अज्ञान ।

      अहंबुद्धि और ममता ज्ञान ॥

      मुझको जानो अपना दास ।

      दीजो चरणकमल में वास ॥

      त्राहि-त्राहि पुरूषोत्तम ईश ।

      हाथ लगाओ हमरे शीश ॥

      भक्तों की रक्षा करो, श्रीचक्रधर कृपाल ।

      मोक्षदान हमें दीजिये, विशाल देव के लाल ॥

      चौपाई

      श्रीचक्रधर गोविंद, गोपाल ।

      भक्त वत्सल प्रभु दीन दयाल ॥

      अनाथ नाथ जगत के स्वामी,

      घट-घट के प्रभु अन्तर्यामी ॥

      श्रीचक्रधर सर्वज्ञ अविनाशी ।

      सब जग तेरी ज्योति प्रकाशी

      जय विशाल देवकी नंदन,

      काटो संकट असुर निकन्दन ॥

      दोहा

      बुद्धि हमारी हत करो, काम, क्रोध, मोह छाय ।

      दर्शन दीजो श्रीचक्रधर, कीजे वेग सहाय ॥

      चौपाई

      नागार्जुन मनमोहीं विचारा ।

      बिना श्रीचक्रधर नाहीं विस्तारा ॥

      मन-वाणी से उसे ध्यावो ।

      अपना बेड़ापार लगाओ

      ज्ञान उसी का हृदय धारी ।

      तन-मन-धन सब उस पे वारो ।

      जो जन यह सब कर दिखालावे ।

      कष्ट ओस दे निकट न आवे ॥

      दोहा

      हाथ जोड़ विनती करूं, गोपाल १

      दासानुदास भक्तन की रक्षा करो, हे प्रभु दीन दयाल -२ ॥ -

      : इति श्री चक्रधर चालीसा सम्पूर्ण :

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