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      श्रीकृष्ण चालीसा

      श्रीकृष्ण चालीसा

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      श्रीकृष्ण चालीसा

      जय मनमोहन शाम मुरारे ।

      जय जय जय बृजराज दुलारे ॥

      जय जग तारण कारण स्वामी ।

      जय बंसीधर अन्तर्यामी ।

      जय शकटासुर अघ संहारी ।

      जय घनश्याम गोवर्धन धारी ।।

      जय जसुदा सुत जय नंदनंदन ।

      जय तेरी हो असुर निकंदन ॥

      पूतना कपट रूप धर आई ।

      प्रभो ! आपने मार मुकाई ॥

      श्री यमुना जल पावन कीना ।

      अभय दान भगतन को दीना ॥

      मान इन्द्र का तोड़ दिखाया ।

      प्रभो आपकी अद्भुत माया ।।

      लेन परीक्षा ब्रह्मा आए ।

      लीला देख के सीस नवाए ||

      जय माधव जय जय बनवारी ।

      जय जय तृणावर्त कंसारी ॥

      जय गोपाल सदा सुखदाई ।

      जय केशव जय जय यदुराई ॥

      जय अर्जुन के सखा प्यारे ।

      जय पांडु - सुत तारन हारे ॥

      जय जय जय जगबन्धन टारन ।

      जय संतन के दुःख निवारण ।।

      संदीपन का शोक मिटाया ।

      उसका मोया पुत्र जिवाया ॥

      चेदीराज महाहंकारी ।

      शत से अधिक दीन जिस गारी ॥

      अन्तकाल पापी फल पाया ।

      आपने उसका सीस उड़ाया ॥

      मधु केटव- से खल संहारे ।

      निज भगतन के काज संवारे ॥

      जय सुर - साधु - विप्र हितकारी ।

      जय मधुसूदन जय बनवारी ॥

      जय जय पुरुष पुराण अनन्ता ।

      जय लीलाधर जय भगवन्ता ।।

      जय जय जय घनश्याम दयाला ।

      जय अविनाशी परम कृपाला ॥

      जय सत् चित् आनन्द स्वरूपा ।

      जय जय जय भूपन के भूपा ! ।।

      एक समय जब माटी खाई ।

      मात यशोदा मारन आई ॥

      आपने मुख तब खोल दिखाया ।

      सकल जगत तिस में दिखलाया ।।

      देखत भई चकित महतारी ।

      फिर प्रभु माया अपने डारी ।।

      मनहर माखन चोर सदाए ।

      अद्भुत अद्भुत दृश्य दिखाए ||

      जय जगदीश चराचर करता ।

      जय प्रतिपालक हरता भरता ।

      जय सुखसदन क्लेश निवारण ।

      जयजय जयजग तारन कारण ।।

      जय पूरण जय जय परमेश्वर ।

      जय आनन्दघन जय सर्वेश्वर ।।

      जय घट घट की जानन हारे ।

      जय वसुदेव - देवकी प्यारे ॥

      जब अर्जुन को मोह ने घेरा ।

      आया उसको नजर अन्धेरा ॥

      कर्म अकर्म की सुरत बिसारी ।

      आया अन्त वह शरण तिहारी ॥

      उसको गीता - ज्ञान सुनाया ।

      अपना रूप विराट दिखाया ||

      विजय पांडवों की करवाई ।

      नाश हुए पापी अन्यायी ॥

      जय गीता के गावन वाले ।

      जय जय विजय दिलावन वाले ||

      जय अर्जुन के मित्र प्यारे ।

      जय जगबन्धु जगत् से न्यारे ॥

      जय कारण जय कार्यरूपा ।

      जय जय अलख अभेद अरूपा ॥

      जय जय निराकार साकारा ।

      जयजयजयजय विश्व आधारा ॥

      धर्मपुत्र जब द्रोपदी हारी ।

      परवश हुई आन बेचारी ॥

      पापी नगन करन जब लागे ।

      रुदन किया उस आपके आगे

      उसके आपने चीर बढ़ाये ।

      दयो धन जैसे लज्जाए ॥

      कृपा आपकी जिस पर होवे ।

      जन तेरा काहे को रोवे ॥

      जय जय द्रोपदी कष्ट निवारण ।

      जय जय पांडव भक्त उद्धारन ।।

      जय जय जय दीनन हितकारी ।

      जय जय बालमुकुन्द गिरिधारी ॥

      जय अच्युत जय जय असुरारि ।

      जय जय चक्र सुदर्शन धारी ॥

      जय ईश्वर जय सर्वव्यापक ।

      जय योगीश्वर जय प्रतिपालक ॥

      विप्र सुदामा मित्र तिहारा ।

      अति दरिद्र होया दुखियारा ॥

      आतुर हो आया तव द्वारे ।

      आपने उसके कष्ट निवारे ॥११

      अति धनिक ब्राह्मण को कीना ।

      धन उसको प्रभु अतुलित दीना ॥

      आपने मित्र - भाव अपनाया ।

      जग में दीनदयाल सदाया ।।

      जय भगतन - सन्तन हितकारी ।

      जय त्रैलोकीनाथ बनवारी ॥

      जय जय विश्वरूप प्रभु प्यारे ।

      \जय जसुमति - सुत नन्द दुलारे ||

      जय अक्षर अव्यय अविकारी ।

      जय श्रुतिपूज्य प्रभु पापारि ।

      जय विश्वपति जय हलधर भ्राता ।

      जय दुःख हरण सुखों के दाता ।।

      एक समय इक नन्दा नाई ।

      दुर्योधन की सेवा भुलाई ।

      रुप उसी का आपने धारा ।

      सबकुछ उसका काज संवारा ॥

      फिर उस नाई दर्शन पाया ।

      भगत जान निजधाम पठाया ।

      जात-पात ना आपको प्यारी ।

      भगतन को दीनी सरदारी ||

      जय समदर्शी कृष्ण मुरारी ।

      जय जय जय भगतन भयहारी ।

      जय जय द्वारिकेश सुखदाई |

      जय जय प्रभु जय जय प्रभुताई ॥

      जय गोपेश गोविन्द गोपाला ।

      जय करुणाकर कृष्ण कृपाला ।

      जय सुक्ष्म जय महास्थूला ।

      जय जय जगत्वृक्ष के मूला ।

      दुर्योधन के मन में आया ।

      पांडवो के संग कपट कमाया ।

      लाखागृह इक तैयार कराकर ।

      उसके बीच में उन्हें फंसाकर II

      बाहर से उसे आग लगाई।

      भस्म होयें जिमि पांडव भाई ॥

      प्रभो ! आपने की चतुराई ।

      लाखागृह से सुरंग बनाई ||

      जय पांडु - सुत तारन हारे ।

      जय दुष्टों को मारन हारे ॥

      जय जय जगन्नाथ सुखरासी ।

      जय अखंड अतुलित अविनाशी ॥

      जय जय वेद-पुराण बुलावें ।

      जय जय ऋषि-मुनि जन गावें ॥

      जय जय हुंडी तारन वाले ।

      जय नरसी दुःख टारन वाले ॥

      विदर भगत के जब घर आए।

      उसकी पत्नी पत्र खिलाए ॥

      विदर भगत ने आकर रोका ।

      कदली- छाल देने से टोका ॥

      इस प्रकार तब आप उचारे ।

      प्रेमी भगत मुझे हैं प्यारे ॥

      लगी मुझे है छाल प्यारी ।

      और गिरी की चाल व्यारी ॥

      जय जय प्रेम भाव के प्यारे ।

      जय जय आदि अन्त से न्यारे ॥

      जय जय विश्व बन्धु जगपालक ।

       जय जग पिता यशोदा बालक ।।

      जय जय सूरदास के प्यारे ।

      जय आनन्द घनश्याम मुरारे ॥

      जय जय मोर मुकुट के धारी ।

      जय पीताम्बर सहित मुरारी ॥

      जो श्रीकृष्ण चालीसा गावे ।

      कष्ट उसके निकट न आवे ॥

      दुःख-दर्द सब होवन दूर ।

      वह धनधान्य से रहे भरपूर ॥

      कृष्ण चालीसा अति प्यारा ।

      मुक्ति-भुक्ति को देवन हारा ॥

      जय जय जय श्रीकृष्ण अनन्ता ।

      जय जय जय पूरण भगवन्ता ॥

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