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      श्रीदत्तात्रेय चालिसा

      श्रीदत्तात्रेय चालिसा

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      4. श्रीदत्तात्रेय चालिसा

      श्रीदत्तात्रेय चालिसा

       दोहा

      महन्त गोपाल मुनि आराध्य

      जिन के सिमरण मात्र से सिद्ध होय सब काज ।

      सो हमपर किरपा करे श्रीदत्तात्रेय महाराज ।।

      चौपाई

      जगद्गुरु श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।

      जगत्बंधु प्रभु अंतर्यामी ।

      निर्गुण पार ब्रह्म परमेश्वर ।

      निर्विकार मालक सर्वेश्वर ।

      देव सकल जिनके गुण गावें ।

      ऋषि मुनि योगी पार न पावें ।

      तीन लोक के पालन हारे ।

      भक्त जनों के प्राण पियारे ।

      ब्रह्मा विष्णु महेश ध्यावें ।

      नित चरणों पर सीस झुकावें ।

      अनसूया के सुत हितकारी ।

      आपके चरणों पर बलीहारी ।

      तीनों देवता मिल इक बार ।

      आए अनसूया के द्वार ।

      तीनों लेन परीक्षा आए ।

      कंकर पत्थर साथ ले आए ।

      दोहा

      अनसूया को दे दिये कंकर कहा उचार ।

      देवी तुम इनकी करो फौरन खीर तैयार ।।

      चौपाई

      मर्म सती ने उनका जाना ।

      सोचा हुआ इन्हें अज्ञाना ।

      देगची में वह कंकर पावे ।

      नीचे अग्नी सती जलावे ।

      मन में सिमरत अपना बालक ।

      श्रीदत्तात्रेय जग के पालक ।

      दीन दयाल दया तब कीनी ।

      खीर उन्हीं की तब कर दीनी ।

      अनसूया फिर देव बुलाए ।

      खीर देख तीनों घबराए ।

      कौन प्रभु की माया जाने ।

      ब्रह्मा विष्णु महेश लजाने ।

      फिर तीनों ने कहा आखीर ।

      वस्त्र उतार परोसो खीर ।

      इतने में श्रीदत्तात्रेय आए ।

      कौतुक अचरज आन दिखाए ।

      दोहा

      तीनों बालक होगये ब्रह्मा विष्णुमहेश ।

      अपनीमाया डाल कर खेलन गए सर्वेश ।

      चौपाई

      पारबती ब्रह्माणी आई |

      लक्ष्मी ग्रीवा आन झुकाई ।

      देंखे बालक रुप स्वामी ।

      कहें बक्ष दो अन्तर्यामी ।

      अनसूया को सीस झुकावें ।

      नेत्रों से जल धार बहावें ।

      देव नारियां दुःखी निहारी ।

      श्रीअनसूयाजी उच्चारी ।

      रक्षा करो प्रभुदेव बनाओ ।

      इनका बालकरुप मिटाओ ।

      श्रीदत्तात्रेय किरपा किनी ।

      वह माया पल में हर लिनी ।

      श्रीदत्त हैं वह जो दे दिखलाए ।

      आत्रेय अत्री के घर जाए ।

      तब से नाम दत्तात्रेय आया ।

      सैंगऋषि पहले सदवाया ।

      दोहा

      धन धन श्रीदत्तात्रेयजी अजर अमर सर्वेश ।

      स्तुति करें कर जोंड कर ब्रह्मा विष्णु महेश ||

      चौपाई

      श्रीदत्तात्रेय सब गुणखान ।

      मुझ पर कृपा करें भगवान ।

      शंख चक्र और गदा को धारें ।

      वे प्रभु हमरे कष्ट निवारें ।

      हाथरुप जो पात्र बनावें ।

      ब्रह्मादिक लोकों में जावें ।

      नमस्कार मेरी अन्तर्यामी ।

      नमस्कार मेरी सब के स्वामी ।

      निर्मल रक्तवर्ण सुखदाई ।

      तन पर सुन्दर भस्म रमाई ।

      सुन्दर नैन कमल सम सोहें ।

      सकल जगत के मन को मोहें ।

      नमस्कार मेरी बारम्बार ।

      श्रीदत्तात्रेय पूरण अवतार ।

      केयूरन की माला पहिनें ।

      दया रुप हैं जिन के गहनें ।

      दोहा

      जयरुप सिर पर मुकुट कानन कुण्डलधार ।

      मुझ पर किरपा करें श्रीदत्तात्रेय अवतार ।।

      चौपाई

      मुख प्रसन्न जिन का अतिसोहे ।

      रतिपति के मन को आति मोहे ।

      मुक्तिभुक्ति के देवनहारे ।

      जय जय सुन्दर सुवन प्यारे ।

      पूरण ब्रह्म सुखों के दाता ।

      हे प्रभु सकल जगत भय त्राता ।

      नमस्कार मेरी दीनदयाल ।

      हे प्रभु श्रीदत्तात्रेय किरपाल ।

      राजाओं के राजा स्वामी ।

      सुख स्वरूप प्रभु अन्तर्यामी ।

      मंगल रुप विश्व के कर्ता ।

      पालनहार जगत के भरता ।

      निशिदिन प्रभु तुमरे गुण गाऊं ।

      आप के चरणों शीश झुकाऊं ।

      हे श्रीदत्तात्रेय पालनहार ।

      नमस्कार मेरी बारम्बार ।

      दोहा

      जितने भोग हैं जगत के रखें न उन में ध्यान ।

      वे मुझ पर किरपा करें श्रीदत्तात्रेय भगवान ||

      चौपाई

      नित योगीजन जिन को ध्यावें ।

      आगम निगम भेद न पावें ।

      उनकी चरणी सीस झुकाऊं ।

      उन के गुणानुवाद मैं गाऊं ।

      पूरवादि जो दिशा हैं चारें ।

      वही वस्त्र जिस तन पर धारे ।

      केवल एक कुपीन लगाई ।

      भक्त जनों के जो सुखदाई ।

      अजड ते जड चिज्जड माया ।

      उस से तन जिस नाथ सजाया ।

      पांच भूत जो नहीं अपनावें ।

      ब्रह्मचर्य को पाल दिखावें ।

      दंडीरूप मेरे भगवान ।

      नमस्कार मेरी हर आन ।

      बालक लीला कभी दिखावें ।

      योग भोग भी जो बरसावे ।

      दोहा

      करूं उसी की वन्दना जो मेरे भगवान ।

      अपनी भक्ति का सदा देना मुझको दान ।।

      चौपाई

      भूतादि की पीडा हरते ।

      दूर सकल बाधा को करते ।

      ग्रह पीडा को दूर भगावें ।

      डर तकलीफ निकट नहीं आवें

      जो कोई प्रभु का नाम ध्यावे ।

      निर्धनपन उस का मिट जावे ।

      नमस्कार मेरी हे भगवंता ।

      अजर अमर निर्गुण गुणवंता ।

      त्रेता युग मगहर माह आया ।

      शुक्रवार तव परम सुहाया ।

      शुक्ल पक्ष चौदश को प्रातः ।

      अनुसूया ने जाए दाता ।

      सर्व व्यापक घट घट वासी ।

      त्रैलोकी हैं जिन की दासी ।

      रिध्दि सिध्दि हैं जिनकी चेरी ।

      नमस्कार हो उन को मेरी ।

      दोहा

      सर्वतीर्थ तालाब को जो जग में प्रगटान ।

      वह किरपा मुझपर करें श्रीदत्तात्रेय भगवान ॥

      चौपाई

      लाल कमल सम चरण पियारे ।

      भक्त जनों ने हिरदेधारे ।

      रेणुका आदिको तारनहारे ।

      परशुराम के कष्ट निवारे ।

      सुखी लकडी हरी बनाई |

      परशुराम देखी प्रभुताई ।

      परशुराम तब सीस झुकाया ।

      जय जय मुख से वचन सुनाया ।

      सकल देव जिन के गुणगावें ।

      वे प्रभु मुझ को पार लगावें ।

      सर्व साक्षी प्रभुज्ञान स्वरुपा ।

      दीनबन्धु भूपन के भुपा ।

      अपने आप जो प्रगटे स्वामी ।

      सो श्रीदत्तात्रेय अन्तर्यामी ।

      कृष्णरुप जिस प्रभु ने धारा ।

      जिसने गीता गीत उचारा ।

      दोहा

      उसको मेरी वंदना निशिदिनी बारम्बार ।

      मेरे हिरदे में बसे श्रीदत्तात्रेय अवतार ॥

      चौपाई

      भृगु ऋषि ने जो कुछ गाया ।

      वही दास भाषा में लाया ।

      टूटे शब्द प्रभु अपनाओ ।

      अपनाशुद्ध स्वरुप दिखाओ ।

      इस स्तोत्र को जो जन गावे ।

      वह नर नहीं चुरासी पावे ।

      कामना पूरण करते स्वामी ।

      श्रीदत्तात्रेय प्रभु अंतर्यामी ।

      जो श्रीदत्तात्रेय सिमरण करता ।

      वह अपवित्र हो कभी न मरता ।

      धन और धान्य सकल वह पावे ।

      जो श्रीदत्तात्रेय नाम ध्यावे ।

      आवे निकट न कभी बिमारी ।

      कष्ट सकल हरते पापारी ।

      जो नर दत्तात्रेय गुण गावे ।

      मुक्ति पदारथ वह पा जावे ।

      दोहा

      उनकी लम्बी उमर हो यह स्तोत्र करें जो गान ।

      डाकिनी यक्ष पिशाच भी निकट कभी नहीं आन ॥

      चौपाई

      इस स्तोत्र को जो कोई गावे ।

      दंड न तन का उसे डरावे ।

      भक्तों श्रीदत्तात्रेय ध्यावो ।

      अपना जन्म सफल कर जावो ।

      प्रातः दोपहर शाम को भजना ।

      इस स्तोत्र को कभी न तजना ।

      एक हजार बार जो गावे ।

      वह नर भुक्ति मुक्ति को पावे ।

      उस को श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।

      दर्शन देवें अन्तर्यामी ।

      भृगुऋषि यह शब्द उचारे ।

      मिथ्या तनिक नहीं हैं प्यारे ।

      नमस्कार मेरी हे जगपालक ।

      अनसूया के प्यारे बालक ।

      जय जय श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।

      नमस्कार मेरी अन्तर्यामी ।

      दोहा

      भक्तन की रक्षा करो हे प्रभुदीनदयाल ।

      आया हैं प्रभु आपके द्वारे पर गोपाल ॥

       

      ॥ इति श्रीदत्तात्रेय चालिसा संपूर्णम् ॥

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