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      श्रीनाम महिमा स्तोत्र

      श्रीनाम महिमा स्तोत्र

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      श्रीनाम महिमा स्तोत्र

      प्रेमी प्रभु के नाम की, महिमा अपरम्पार ।

      जिसके कारण होत है निराकार साकार ॥ १॥

      मधुर नाम श्रीचक्रधर, उपजावत है वेध ।

      जाप करो इसी नाम का, प्रेमी छोड़ निषेध ॥२॥

      प्रेमी जपले श्रीचक्रधर, यदि चाहे तू ज्ञान ।

      होत नाम से बोध है, कहते श्रीभगवान् ॥३॥

      जोते हैं प्रेम से, सदा श्रीचक्रधर नाम ।

      प्रेमीले अनुसरण वे, पावें मुक्ति धाम ॥४॥

      स्मरण ईश का होत है, नाम स्मरण से जान ।

      जपो श्रीचक्रधर श्रीचक्रधर, प्रेमी त्यज अभिमान ॥ ५ ॥

      नाम श्रीचक्रधर परिहरे, जनके सकल निरोध ।

      यही नाम जप प्रेमियां, त्यजकर वैर विरोध ॥६॥

      प्रेमी नाम सिमरण से, संकट हों सब दूर ।

      जैसे इन्द्र के वज्र से, गिरी हो चकनाचूर ॥७॥

      यदि दुःखों का गगन ही, पड़े शीश पर आन ।

      प्रेमी रक्षा करत हैं, नाम श्रीचक्रधर जान ॥८॥

      विघ्न दूर सबहोत हैं, जपो श्रीचक्रधर नाम ।

      करना प्रेमी प्रेम से, सिमरन आठों याम ॥ ९ ॥

      नाम करे सहायता, और न कोई मीत ।

      प्रेमी त्यज सब आशा को, करो प्रभु संग प्रीत ॥ १० ॥

      जहाँ जाकर आवे नहीं, यदि चाहे वह धाम ।

      प्रेमी सांचे प्रेम से, जपे श्रीचक्रधर नाम ॥११॥

      नाम महिमा प्रेम से, जो गाये त्र्यकाल ।

      रोग शोक और मौत का भय नाशे तत्काल ॥१२॥

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